इस लम्हे का इंतजार भारतीय खेल प्रेमियों को पिछले तीन साल से था। 2016 के रियो ओलंपिक के वुमन्स सिंगल्स बैडमिंटन फाइनल में पहली बार कोई भारतीय पहुंची थीं। बैडमिंटन में पहली बार गोल्ड पर अपना नाम लिखवाने के लिए करीब सवा सौ करोड़ भारतीयों की हसरतें हिलोरीं मार रही थीं, लेकिन स्पेन की कैरोलिना मारिन ने सारी उम्मीदों पर पानी फेर दिया। पीवी सिंधु को रजत पदक से संतोष करना पड़ा।
अगले ही साल इंडियन ओपन सुपरसीरीज ने सिंधु ने मारिन को हराकर इसका बदला चुका लिया, लेकिन विश्व बैडमिंटन में अपनी धाक जमाने के लिए उसी साल अभी एक बड़ा मौका सिंधु का इंतजार कर रहा था। वो मौका मिला स्कॉटलैंड के ग्लासगो में जब सिंधु तीसरी बार वर्ल्ड बैडमिंटन चैंपियनशिप के फाइनल में पहुंची। 2013 और 2014 में वर्ल्ड बैडमिंटन चैंपियनशिप का कांस्य जीतने वाली सिंधु के लिए यहां मौका था कांसे को सोने में बदलने का, लेकिन 110 मिनट तक चले शानदार मुकाबले में जापान की नाजोमी ओकुहारा ने एक बार फिर सिंधु को इतिहास रचने से रोक दिया। ये हार ना सिर्फ सिंधु के लिए दिल तोड़ने वाली थी बल्कि भारतीय खेल प्रेमियों के भी भरोसा डगमगा देने वाली हार थी। एक अग्रेजी अखबार ने तो सिंधु के लिए चोकर शब्द तक इस्तेमाल कर डाला। चोकर, यानी बड़े मैच के दबाव में बिखर जाने वाला। हालांकि, सिंधु और उनके समर्थकों ने चोकर टैग का कड़ा प्रतिवाद था, लेकिन इससे सिंधु का पीछा छुड़ाना मुश्किल हो गया।
2017 में ही बीडब्ल्यूएफ वर्ल्ड चैंपियनशिप के फाइनल में ओकुहारा से हारीं तो दुबई वर्ल्ड सुपर सीरीज में जापान की अकाने यामुगुची ने हराया।
अगले साल यानी 2018 में भी बड़े मैच के प्रेशर में बिखरने का सिलसिला जारी रहा। ऑल इंग्लैंड बैडमिंटन के सेमीफाइनल में यामागुची ने शिकस्त दी तो गोल्डकोस्ट कॉमनवेल्थ गेम्स और एशियाई खेलों में भी रजत से संतोष करना पड़ा। हालांकि साल के अंत में ग्वांगझू में बीडब्ल्यूएफ वर्ल्ड टूर फाइनल्स जीतकर सिंधु ने उम्मीद की ये रोशनी दिखाई कि वो मानसिक बाधा से पार हो रही हैं और रविवार को स्विटजरलैंड के बासेल शहर में सिंधु ने इसे साबित भी कर दिया।
क्या मैच था? क्या दबदबा था? जो लोग बैडमिंटन को फॉलो कर रहे हैं, उनका मानना है कि किसी मैच पर ऐसा दबदबा उन्होंने खिलाड़ी का नहीं देखा। जापानी नाजोमी ओकुहारा अब तक सिंधु पर भारी पड़ती रही थीं लेकिन इस बार ओकुहारा की एक ना चली। मात्र 37 मिनट में सिंधु ने ओकुहारा को 21-7, 21-7 से चलता कर दिया। सिंधु ने वर्ल्ड बैडमिंटन चैंपियनशिप अपने नाम कर लिया। पिछले चार प्रयासों में जो कामयाबी उनकी झोली से छिटक रही थी, उसे सिंधु ने इस बार फिसलने नहीं दिया। ये कामयाबी इसलिए अहम है क्योंकि अब तक कोई भारतीय इसे हासिल नहीं कर पाया। सर्वकालिक महान खिलाड़ियों में शुमार होने वाले प्रकाश पादुकोण ने 1974 में पहली बार वर्ल्ड बैडमिंटन चैंपियनशिप में पदक जरूर जीता था लेकिन वो कांस्य था। सिंधु ने दो साल पहले उसे रजत में बदला और अब स्वर्ण में। सिंधु की ये उपलब्धि भारतीय बैडमिंटन की युगांतकारी घटना हो सकती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने बधाई संदेश में कहा भी कि सिंधु का लगन और समर्पण अनुकरणीय है। उनकी ये जीत आने वाली कई पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेगी। शाबाश सिंधु। हर हिन्दुस्तानी को आप पर नाज है। गर्व का ये लम्हा देने के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया।