…अगर चीन 1962 को यादकर खुश है तो अपनी ही चीनी से मुँह मीठा कर ले , चीनी सरकार के मुखपत्र ‘ग्लोबल टाइम्स’ द्वारा भारत को कभी युद्ध की धमकी दे रहा है तो कभी 1962 जैसा परिणाम भुगतने की चेतावनी …
पहले बता दे आपको कि जहां तक 1962 में हारने की बात है तो यह राजनीतिक पराजय थी, न कि सैन्य हार. भारत पंचशील के स्वर्णिम स्वप्न में खोकर जब हिंदी-चीनी भाई-भाई के नारे में खोया हुआ था, तभी बासठ की लड़ाई चीन द्वारा विश्वासघात के रूप में भारत को प्राप्त हुई. पहले चीन 1962 के आगे के इतिहास को भी याद रखना सीखे। 1967 और 2017 को भी प्रकाशित करने की क्षमता रखे क्योंकि मीडिया हिंदुस्तान में भी है और चीन के जगजाहिर कृत्यों को खोदकर खंगाल करने की कूबत रखती है ।
कश्मीर मुद्दा था परिणाम भी देखा चीन ने, अब पेंगांग झील के उत्तरी किनारे फिंगर फोर और गलवान वैली में गश्त 14, 15 व 17 – ए महीनों से मुद्दा ही बन रहा है, तो सावधान चीन.. ये बासठ का युग नही, युग बदला बदला हिंदुस्तान.. अब अग्नि सीरीज चलेगी भभकते हुए अग्निकुंड से गोलों की बरसात होगी जिसमें भस्म होने का किसी को अहसास तक नहीं होता।
1967 में 300 ही पॉजिटिव किया था जाबांज सावत सिंह ने, तब नजदीक थे अबकी सोशल डिस्टेंसिंग के तहत सुखोई गरजेगी । प्रकृति को चुनौती देकर कोरोना जैसे राक्षस को जन्म देने वाले सृष्टि के लिये बन चुका घातक चीन …विश्वपटल पर तेरा अमानवीय कृत्य इतिहास में जरूर लिखा जाएगा ।
खुद को शक्तिशाली मानने वाला अमेरिका परिस्थिति वश भले ही एक कदम पीछे हट गया हो लेकिन भारत अब आत्मनिर्भर है और उसके पास एक कुशल नेतृत्व है। अबकी बार गलतफहमी में न रहो साहब…भारत अब चरखा नही चलाता….। अब्दुल हमीद का जुनून और अभिनंदन का जोश लेकर उतरेगी भारतीय सेना ।
अबकी शीशी फूटने से पहले चाइना में ज्वालामुखी फूटेगा मौकापरस्त चीन तुम्हारी सभी कूटनीतिज्ञ चाल को भारत नाकाम करने में सक्षम है । डर तुम्हे ही ज्यादा लग रहा है भारत से वरना मध्यस्थता का रास्ता तुम कभी नही अपनाते….क्यों न हो जाये आमने सामने एक जंग जिनमे न हो रूस न अमेरिका…अगर तिरंगे की झुकी फोटो भी दिखा देना तो मैं एक भारतीय और कलमकार की हैसियत से आजीवन लिखना छोड़ दूँगा…बता दूँ भारतीय सपूत गोली को सीने पर रोकते है और रूह निकल जाने के बाद भी तिरंगा हाथों में सीधा रखते है तब तक.. जब तक दूसरा फौजी आकर तिरंगे को थाम न ले।
संख्या और जनसंख्या ज्यादा होने से युद्ध नही जीता जा सकता वरना अब तक पूरा विश्व तुम्हारा गुलाम होता…नियंत्रण रखिए जनसंख्या पर काहे जमीन चोरी करनी पड़े। भारत पर विजय का स्वप्न देखने की सोंच तो कोई भी रख सकता है लेकिन वो हमीद का हौसला कहाँ से लावोगे …मुस्कान के साथ भगत के फाँसी पर झूलने वाला कलेजा कहाँ से लावोगे…आजाद और बोस के सिरफिरेपन का इतिहास भी पढ़ना और साथ मे अभिनंदन की देधभक्ति को पहले नमन वंदन करना… । उपर्युक्त तथ्य कोई फिल्मी डायलाग नही यथार्थ सत्य है , बता दे कि भले ही चीन दुनिया के पैमाने पर एक बड़ी आर्थिक शक्ति हैं. वह युद्ध तभी चाहेगा जब पूरी तरह से जीत हो. वह भारत से अब पूरी तरह नहीं जीत सकेगा।
फ़ौजी ताकत के आधार पर भारत अब बासठ की तुलना में काफी दृढ़ता, अनुभवी और शक्तिशाली है। चीन इस तथ्य को जानता है कि वह भारत को नहीं हरा सकता है। चीन लगातार सिर्फ भारत पर बासठ के युद्ध के द्वारा दबाव बनाने की कोशिश में लगा हुआ है। 2017 में 1962 को स्मरण कराने वाले चीन को 1967 भी याद रखना चाहिए कि 5 वर्ष बाद इतिहास इसका भी गवाह है कि 1967 में हमारे जांबाज सैनिकों ने चीन को जो सबक सिखाया था, उसे वह कभी भुला नहीं पाएगा।
भारत के शस्त्रागार की ताकत से चीन अनभिज्ञ नहीं है, बैलिस्टिक मिसाइल होने के नाते, अग्नि 5 को दुनिया भर में रक्षा बलों द्वारा ज्यादातर मौजूद रडार सिस्टम से भी नहीं पता लगाया जा सकता है। अग्नि 5 का वजन लगभग 50 टन है और यह लगभग पूरे चीन और पाकिस्तान को टारगेट कर सकता है, यहाँ तक कि यह यूरोप में भी अपने लक्ष्य तक पहुंच सकता है।
बाकी सुखोई-30 तो सिर्फ कोरोना के जन्मदाता का बेसब्री से एक आदेश का इंतजार कर रहा है जिसकी काट शायद निर्माणकर्ता के पास भी नहीं है। सुखोई-30 एमकेआई को भारतीय वायुसेना का सबसे आक्रमक लड़ाकू विमान माना जाता है , चीन इस डर को समझ कर मध्यस्थता का राग अलाप रहा है उसे विश्व के नक्शे से हटाने के लिए इस समय का अतुल्य भारत सक्षम है ।
लेखक— अमित पाठक
( बहराइच )
